नवरात्र महा अष्टमी पूजन का महत्व।
झण्डेवाला देवी मंदिर में नवरात्र महोत्सव के नौवें दिन दुर्गा महा अष्टमी का आयोजन धूम धाम से किया जाता है। पौराणिक मान्यता अनुसार मां झण्डेवाली का पूजन अष्टमी के पवित्र दिन करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। नवरात्रों की यह तिथि परम कल्याणकारी, पवित्र, परम सुख को देने वाली है।
शुक्ल पक्ष की दुर्गा अष्टमी के दिन प्रातः काल मंदिर के पट खुलते ही मां झंडेवाली के दरबार में श्रद्धालु जय घोष करते हुए दर्शनों के लिए कतारों में लग कर मां झण्डेवाली के सुंदर एवं अलौकिक श्रृंगार दर्शनों का आनंद लेकर अपने को कृतार्ध करते हैं।
मंदिर में सारा दिन भक्तों की भीड़ लगी रहती है। मंदिर के चहुं ओर मानो मेले जैसा दृश्य प्रतीत होता है। मंदिर की अत्यंत सुंदर व्यवस्था के अंतर्गत श्रद्धालु सुंदर दर्शनों के साथ साथ शीतल जल ग्रहण कर भंडारे के प्रसाद का भी आनंद लेते हैं।
शुक्ल पक्ष की महा दुर्गा अष्टमी के दिन झण्डेवाला देवी मंदिर में भव्य एवं आकर्षक जागरण का आयोजन किया जाता है। रात के समय मंदिर की अलौकिक सुंदरता ऐसे लगती है मानो देवी देवताओं ने स्वयं अपने हाथों से मां झण्डेवाली के मंदिर को सजाया है।
यह भी मानता है कि शुक्ल पक्ष की दुर्गा अष्टमी के दिन मां झण्डेवाली स्वयं ज्योति स्वरुप में विराजमान होती हैं एवम् श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इसलिए जागरण की ज्योति प्रचंड की आरती सुनने का भी विशेष महत्व है। आरती के पश्चात सुप्रसिद्ध गायक द्धारा माँ झण्डेवाली जी की सुन्दर सुन्दर भेंटों का गुणगान किया जाता है। जिसे सुन कर श्रद्धालु मन्त्र मुग्ध एवम भाव विभोर हो जाते हैं।
जागरण की रात को मां को भक्तों द्वारा विभिन्न प्रकार के मिष्ठान व्यंजनों एवम् पंच मेवे का भोग लगाया जाता है। मां झण्डेवाली को मीठे पेठे का भोग अति प्रिय है।
गुणगान की समाप्ति के पश्चात श्रद्धालुओं को चाय एवं प्रसाद का वितरण किया जाता है। महंत जी द्वारा माँ तारारानी की पावन कथा सुनाई जाती है। इस कथा की प्रथा सदियों से चली आ रही है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माँ तारारानी की कथा के बिना माँ का जागरण सम्पूर्ण नहीं माना जाता। कथा के समय में ही जागरण यजमान परिवार की माँ के सन्मुख गोद भरी जाती है ताकि माँ झण्डेवाली उनके परिवार में सदा सदा अपनी कृपा बरसाती रहे।
नवमी के दिन प्रातः काल मंगला आरती के साथ जागरण का समापन होता है।